दर्जन भर जनप्रतिनिधियों पर भारी एक ही अधिकारी, रूकेगा ग्राम विकास; पिसेगी जनता बेचारी

शहडोल संपूर्ण संभाग आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. इसी बात का फायदा यहां पदस्थ होने वाले अधिकारी व कर्मचारी खूब उठा रहे हैं।
 
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Shahdol MP News: जब जिसका जैसे जी चाहा संभाग की भोली भाली जनता को जमकर लूट खसोट रहे हैं। यहां तक की जनप्रतिनिधियों की सुनवाई भी दुहाई बन चुकी है। आलम यह है कि, जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र विकास और जनहितार्थ मांग भले ही करे। लेकिन, यहां मांग और नियम से परे ही कानून चलता है। यहां चलता है तो सिर्फ, अधिकारी राज और उनका हिसाब? ऐसे में सवाल कई उठते हैं, जिनका जबाब तलाशना भी लाजमी है!

खैर, बड़ा सवाल तो यहां यह है कि, जब जनप्रतिनिधियों की कोई सुनवाई नहीं तो फिर निर्वाचन का ढकोसला आखिर क्यों? इस निर्वाचन प्रक्रिया को लेकर जनता की गाढ़ी कमाई खर्च क्यों? जनता का वक्त जाया क्यों? वोट अधिकार है को लेकर मतदाता जागरूकता अभियान क्यों? और बेहद अहम कि, जब कोई अधिकार न हो तो उस पद के लिए भी चुनाव आखिर क्यों? यही हाल है यहां, त्रि-स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग माने जाने वाले जनप्रतिनिधियों का! अगर यह कहा जाए कि, यह इस व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग मानो स्टांप और मोहर स्वरूप हैं, तो शायद यह बात अतिश्योक्ति न होगी!

यहां अधिकारी राज पंचायती राज के महत्वपूर्ण जनप्रतिनिधियों पर हावी है। यह अधिकारी राज इतना हावी है कि, पंचायत के जनप्रतिनिधि मानो इनके कोई मातहत कर्मचारी समान हों। पंचायत प्रतिनिधि अपने ग्राम विकास और हितग्राही मूलक विषयों को लेकर चाहे जो विषय बात समक्ष रखें, अधिकारी अपना ही राग आलाप करते दिखते हैं। ऐसा ही एक ताजा मामला जिले की जनपद पंचायत जयसिंहनगर के ग्राम पंचायत रेउसा से सामने आया है। जहां करीब दर्जन भर से ज्यादा पंचायत प्रतिनिधियों ने मंगलेश्वर सिंह नामक भ्रष्ट सचिव को वित्तीय अधिकार दिए जाने की खिलाफत की।

यहां तक कि, सभी पंचायत प्रतिनिधियों ने अपने शिकायती मांग पत्र में यह साफ तौर पर उल्लेख किया है कि, वह किसी भी हाल में सचिव मंगलेश्वर के साथ काम नहीं करेंगे। सरपंच ने तो उनके साथ संयुक्त खाता तक खुलवाने पर मनाही की है। जिसके चलते निश्चित ही हितग्राही मूलक कार्यों सहित ग्राम विकास कार्य अवरूद्ध होंगे। पर जाने क्यों एक सचिव से इतना लगाव कि, उसी पंचायत के दर्जन भर से ज्यादा जन प्रतिनिधियों का विरोध भी सीईओ जिला पंचायत को दिखलाई न पड़ा?

गौरतलब है कि, इन प्रतिनिधियों की इस बात सिरे से नकारते हुए, जिला पंचायत के सीईओ ने अपनी कलम चलाकर उसी भ्रष्टाचारी सचिव को ग्राम पंचायत रेउसा में सचिवीय वित्तीय अधिकार दिए जाने का आदेश अपने ही हिसाब से जारी कर दिया। विचारणीय है, अधिकारी का अधिकार कहां तक? जनप्रतिनिधि आखिर किसके और किसलिए? भ्रष्टाचारी सचिव को जनप्रतिनिधियों के विरोध बावजूद वित्तीय अधिकार आखिर क्यों? पेसा में ऐसा क्यों?

आखिर किस चश्मे से जिला पंचायत सीईओ, ग्राम विकास को देख रहे,,, अगले अंक में जल्द ही!

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