बड़ा सवाल: भ्रष्टाचार की वैतरणी में गोते लगा रहे उपयंत्री को अभयदान किसका?,

वित्तीय अनियमितता का आरोपी बना सहकारिता का सरताज पूर्व अध्यक्ष ने लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू से की थी शिकायत, जांच ठंडे बस्ते में कैद.
 
Shahdol

शहडोल। "बिना सहकार, नहीं उद्धार" सरकार का दिया यह नारा महज एक नारा ही बन कर रह गया है। सहकारी संस्थाओं को स्थापित करने का उद्देश्य, समाज के कमजोर वर्गों के शोषण को रोकने व उनके सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना है। किंतु, जब विभाग में ही पदस्थ मानो कुछ खटमलनुमा कर्मचारी ही विभाग का खून चूसने पर आमादा हो जाएं, विभाग की दुर्गति होना लाजिमी है।

दरअसल, यह पूरा मामला है मुख्यालय स्थित जिला सहकारी केन्द्रीय मर्यादित बैंक का, जहां पदस्थ एक भ्रष्ट अधिकारी के विरुद्ध की गई शिकायत के करीब 3 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कार्रवाई की आंच उस पर नहीं आ सकी। इतना ही नहीं बल्कि, उक्त भ्रष्टाचारी को वरिष्ठ अधिकारी ने अभयदान देकर उसे पोषित करने का काम भी कर दिखाया है। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, आपसी सांठगांठ से उपरोक्त बैंक में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है।

सूत्रों से उपलब्ध जानकारी अनुसार, सहकारिता विभाग में के के पयासी नामक व्यक्ति ने बतौर उपयंत्री अपने सफर की शुरुआत वर्ष 1990 से की। कुछ वर्षों में उनमें जाने ऐसी क्या खूबी वरिष्ठ अधिकारी ने देखी कि, उन्हें उपकृत किया जाकर उनके मूल पद उपयंत्री होने के बावजूद सहायक प्रबंधक का दायित्व सौंप दिया। इस प्रकार से की गई ताजपोशी को लेकर जहां कई प्रश्न आज भी जबाब के इंतजार में हैं। तो वहीं, बैंक में पदस्थ रहे कर्मचारियों ने दबी जुबान विरोध भी जताया।

इतना ही नहीं बार-बार लगाए गए आरोपों और शिकायतों के बाद भी उक्त उपयंत्री कठघरे में न लाया गया। वहीं प्रशासकीय मदों से प्राप्त राशि पर संभाग अंतर्गत आने वाले जिले शहडोल, अनूपपुर व उमरिया में सहकारी समितियों के गोदामों के निर्माण करवाने का दायित्व उन्हें मिला। आरोप लगाया गया कि, इन निर्माण कार्यों में उक्त उपयंत्री ने जमकर भ्रष्टाचार की होली खेली है। इसके अलावा सहकारी बैंक शहडोल में पदस्थ कर्मचारियों से सातवां वेतनमान स्वीकृत कराने के नाम पर साढ़े ग्यारह लाख हजम किए जाने का आरोप भी लगा।

इन शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए संभाग के तत्कालीन संभागायुक्त राजीव शर्मा ने उपयंत्री पयासी को निलंबित कर दिया था। लेकिन, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक शहडोल के तत्कालीन महाप्रबंधक के के रायकवार के साथ सांठगांठ कर उपयंत्री बहाल होकर पुनः अपने ओहदे पर बैठ गया। भ्रष्टाचार के दलदल में गले तक डूबे इस उपयंत्री की शिकायत दस्तावेजों सहित केन्द्रीय बैंक शहडोल पूर्व अध्यक्ष वीरेश सिंह रिंकू ने लोकायुक्त व आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को भी की थी।

आरोप लगाया कि, उक्त उपयंत्री ने आकूत संपत्ति अर्जित की है। अपनी पत्नी, ससुर और रिश्तेदारों के नाम मंडला, जबलपुर, डिंडोरी और शहडोल में रिहायशी और व्यवसायिक भूमि का क्रय किया है। तीन बेटियों की शादी में लगभग सवा करोड़ से अधिक की राशि व्यय की है। लेकिन, आकूत संपत्ति अर्जित कर चुके उपयंत्री का प्रभाव कहें या भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए गठित एजेंसियों की लापरवाही... जो उपयंत्री की नाक में नकेल न डाली जा सकी? कहा जा रहा है कि, यदि शिकायतों की संबंधित विभाग और एजेंसियां निष्पक्ष जांच करें, तो और भी कई सच पर्दे से बाहर आ जायेंगे।

इनका कहना है...

पुराने संयुक्त संचालक के पत्राचार आधार मैंने इस प्रकरण में जांच हेतु टीम का गठन किया है। की गई कार्रवाई से आपको आगे अवगत कराया जायेगा।

सुरेखा आनंद अहिरवार
संयुक्त संचालक, सहकारिता शहडोल।

आप इस प्रकरण से संबंधित जानकारी भेज दीजिए। कार्यालय में जाकर आपको इस प्रकरण की जानकारी दे पाऊंगा।

गोपाल दांगी
एसपी, लोकायुक्त।

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