वसीयत के आधार पर जमीन अपने नाम करवाने का रास्ता साफ, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वसीयत के आधार पर भूमि रिकॉर्ड में नामांतरण (Mutation) पर कोई कानूनी रोक नहीं है। राजस्व अधिकारी वसीयत की वैधता के आधार पर म्यूटेशन से इनकार नहीं कर सकते।

 
सुप्रीम

भारतीय कानूनी व्यवस्था में संपत्ति के उत्तराधिकार और उसके बाद राजस्व रिकॉर्ड (Revenue Records) में नाम चढ़वाने की प्रक्रिया अक्सर लंबी और जटिल होती है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि वसीयत (Will) के आधार पर भूमि रिकॉर्ड में नामांतरण (Mutation) करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है। कोर्ट के इस फैसले से उन हजारों लोगों को राहत मिलेगी जिनके नामांतरण के आवेदन केवल इसलिए रुके हुए थे क्योंकि वसीयत की सत्यता या उसकी कानूनी प्रकृति पर सवाल उठाए जा रहे थे।

​क्या था मामला?
​सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह स्पष्ट करने की आवश्यकता तब पड़ी जब विभिन्न उच्च न्यायालयों और राजस्व अदालतों में इस बात पर विरोधाभास देखा गया कि क्या एक राजस्व अधिकारी (Tehsildar or Revenue Officer) वसीयत के आधार पर सीधे म्यूटेशन कर सकता है, या इसके लिए पहले सिविल कोर्ट से 'प्रोबेट' (Probate) या प्रमाण पत्र की आवश्यकता है।
​अदालत ने यह स्पष्ट किया कि राजस्व रिकॉर्ड का मुख्य उद्देश्य वित्तीय होता है (लगान वसूली के लिए)। म्यूटेशन किसी व्यक्ति को संपत्ति का पूर्ण 'स्वामित्व' (Title) प्रदान नहीं करता, बल्कि यह केवल यह दर्शाता है कि वर्तमान में उस भूमि का लगान चुकाने की जिम्मेदारी किसकी है।
​सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां
​सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सुनवाई के दौरान कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों को रेखांकित किया:
​म्यूटेशन और टाइटल में अंतर: कोर्ट ने दोहराया कि म्यूटेशन प्रविष्टियां केवल वित्तीय उद्देश्यों के लिए होती हैं। यदि किसी व्यक्ति का नाम राजस्व रिकॉर्ड में चढ़ जाता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह उस जमीन का निर्विवाद मालिक बन गया। स्वामित्व का फैसला हमेशा सिविल कोर्ट ही करेगा।
​वसीयत के आधार पर रोक नहीं: यदि कोई व्यक्ति एक वैध वसीयत पेश करता है, तो राजस्व अधिकारी केवल इस आधार पर नामांतरण नहीं रोक सकते कि वसीयत को चुनौती दी जा सकती है।
​राजस्व अधिकारियों का अधिकार क्षेत्र: अदालत ने स्पष्ट किया कि राजस्व अधिकारियों को वसीयत की जटिल कानूनी वैधता (जैसे मानसिक स्थिति या गवाहों की जिरह) की गहराई में जाने के बजाय, प्रथम दृष्टया साक्ष्यों के आधार पर रिकॉर्ड अपडेट करना चाहिए।
​आम आदमी पर क्या होगा असर?
​इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे:
​प्रक्रिया में तेजी: अब तहसीलदारों को वसीयत के आधार पर दाखिल-खारिज करने में हिचकिचाहट नहीं होगी।
​भ्रष्टाचार पर लगाम: अक्सर स्पष्ट नियमों के अभाव में म्यूटेशन की प्रक्रिया को लटकाया जाता था, जिस पर अब लगाम लगेगी।
​सिविल मुकदमों का बोझ: जब तक कोई पक्ष सिविल कोर्ट से स्टे (Stay) नहीं लाता, तब तक वसीयत के आधार पर म्यूटेशन की प्रक्रिया जारी रह सकती है।
​कानूनी प्रक्रिया: अब आगे क्या करें?
​यदि आपके पास किसी पूर्वज या रिश्तेदार की वसीयत है और आप जमीन अपने नाम करवाना चाहते हैं, तो निम्नलिखित कदम उठाएं:
​पंजीकृत वसीयत (Registered Will): हालांकि वसीयत का पंजीकृत होना अनिवार्य नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस रुख के बाद पंजीकृत वसीयत के आधार पर म्यूटेशन बहुत आसानी से हो जाएगा।
​राजस्व विभाग में आवेदन: संबंधित तहसील में नामांतरण के लिए आवेदन करें और वसीयत की प्रति संलग्न करें।
​नोटिस अवधि: राजस्व विभाग आमतौर पर 30 से 45 दिनों का सार्वजनिक नोटिस जारी करता है। यदि कोई ठोस आपत्ति नहीं आती है, तो म्यूटेशन कर दिया जाएगा।

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